टाइपिंग करते हुए गोपालदास नीरज बने थे गीतकार, 6 म‍िनट में लिख डाले सदाबहार गीत, शशि कपूर हुए अवाक

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नई दिल्ली. उत्‍तर प्रदेश के इटावा में पैदा हुए गोपालदास ने बॉलीवुड को कई सदाबहार गाने दिये हैं. उन्होंने हिंदी फिल्मों में कई बेहतरीन गीत लिखे हैं. बता दें कि नीरज टाइपिस्ट से लीरिक्स राइटर बने थे. और बेस्ट लीरिक्स राइटर के लिए नीरज को लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला. नीरज ने हिंदी सिनेमा को लगभग 200 से ज्यादा गाने दिये और इस इंडस्ट्री में राज कपूर -देव आनंद जैसे बेहतरीन दोस्त भी बनाएं लेकिन धीरे-धीरे वो सिनेमा से दूर जाने लगे. उनकी भी लाइफ में एक समय ऐसा कि वह भी दार्शनिक बन गए थे. बचपन से जमीन से जुड़ा हुआ शख्स हमेशा यही कहता था कि उनकी लाइफ में सबसे ज्यादा अहमियत कागज, कलम और दवात है. वह इनके बिना नहीं रह सकते.

गीतकार नीरज ने अपने लाइफ में जो कुछ भी हासिल किया था वह सब कुछ अपने दम किया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि नीरज का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा था. 6 साल की उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. परिवार में इतनी गरीबी थी दो वक्त की रोटी भी खा पाना बेहद मुश्किल था. ऐसे में नीरज अपने अपने घर से दूर यमुना नदी में तैरकर सिक्के निकालने लगे. इससे भी बात नहीं बनीं तो वह पान-बीड़ी बेचना शुरू दिया. इसके अलावा रिक्शा भी चलाया.

भले ही नीरज ने कई यातनाएं सही लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई किसी किमत पर नहीं छोड़ी और 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. हाई स्कूल पास करने के बाद वह टाइपिस्ट का काम करने लगे. कोर्ट कचरी में बैठने से लेकर दिल्ली के सफाई विभाग में बतौर टाइपिस्ट की नौकरी की. साथ ही साथ वह पढ़ाई भी करते रहे और अंत में हिन्दी साहित्य से एमए किया . आगे फिर वह प्राध्यापक भी बने. इसके बाद वह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ दिनों के लिए जेल भी गए.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नीरज ने बॉलीवुड में कुछ ज्यादा समय नहीं बिताया वह 10 साल के अंदर से हिंदी सिनेमा से दूर चले गए. लेकिन इन सालों में वह उन्होंने एक से बढ़ एक सदाबहार गाने दिए. इस लिस्ट में ‘फूलों के रंग से, दिल की कलम से’ (प्रेम पुजारी, 1970), ‘ए भाई, ज़रा देखके चलो, आगे ही नहीं पीछे’ (मेरा नाम जोकर, 1972), ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ (पहचान, 1971), ‘ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली’ ( शर्मीली 1971), ‘फूलों के रंग से, दिल की कलम से’ , रंगीला रे तेरे रंग में’ (प्रेम पुजारी 1970), ‘काल का पहिया घूमे भैया’ (फिल्म- अज्ञात, 1970) ‘ल‍िखे जो खत तुझे’ ( ‘कन्‍यादान’ -1968) जैसे गीत शामिल हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 1968 में आई आशा पारेख, शशि कपूर की सुपरहिट फिल्म ‘कन्‍यादान’ के हिट गाना ‘ल‍िखे जो खत तुझे , जो तेरी याद में…’ को 6 मिनट में लिख डाला था. कहा जाता है कि उस दौर में नीरज बेहद बिजी रहा करते थे.ऐसे में जब फिल्म के प्रोड्यूसर राजेंद्र भाट‍िया ने गोपाल दास नीरज से एक गाना ल‍िखने को कहा था, तब उन्होंने बेहद जल्दबाजी में ये गाना लिखा था. उन्हें इस बारे में नहीं पता था कि ये गाना आशा पारेख, शशि कपूर पर फिल्माया जाएगा. जब गाना आया और यह हिट हुआ तो गोपालदास नीरज की हुनर से खुश होकर फ‍िल्‍म के प्रोड्यूसर राजेंद्र भाट‍िया ने अपनी कनवर्ट‍िवल कार तोहफे में दी थी. यह वही कार थी जो इस गाने में द‍िखाई दी थी.

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